एकटा नाटकक लेल लिखल गेल गीत
कतऽ जाइ छें जुआनीक भार लऽ कऽ
गोरी आठ दस मोहल्ला बेमार कऽ कऽ
भीजल केश लागौ बरखा बरसल एतऽ
प्रेम आगिमे तपि कऽ सुखा ले एतऽ
साँझ पड़िते ई सोलहो श्रृंगार कऽ कऽ
गोरी . . . .
सूति उठि तोहर फोटो देखै छी हम
माँछ देखने बिना जतरा बनबै छी हम
नैन करेजसँ अपन तार जोड़ि कऽ
गोरी . . . .
मनलौं जनमेसँ हम उचक्का छीयै
मुदा प्रेमक बेर सजनी पक्का छीयै
संग जीबै मरै के करार कऽ कऽ
गोरी . . .
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