हे हे पुतौह तऽ लेलकै झोंटा पकरि
मारै ये साउस के भूँइयाँ रगड़ि
बुढ़िये पर गेलैये तामस तऽ झरि
मारै ये साउस.......
भोरे ई भागै छै, साँझे मे आबै छै
किच्छो जँ पूछै तऽ, बेलना चलाबै गै
गेलै बुढ़िया...
गेलै बुढ़िया के एगो तऽ दाँतो उपरि
मारै छै साउस........
मुँहें लगाबै छै, बाहर सुताबै छै
भोजन जँ माँगै तऽ, बसिया खुआबै छै
खा खा मौगी....
खा खा मौगी मलपूआ तऽ गेलै पसरि
मारै छै साउस........
चलती चलाबै छै, बात ने मानै छै
घरबाला अमित के, नहिये गुदानै छै
भेलै अशोक के बात के नहियें असरि
मारै छै साउस......
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एलवम- छिटकी मारि देतौ
स्वर- अशोक अलवेला
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गीत पढ़बाक लेल धन्यवाद, एहिपर अहाँक टिपणीक बाट जोहै छी ।